ईश्वर का संघर्ष

                   होईहि सोई जो राम रची राखा
सन् 2014 चुनावों की सरगर्मी थी , हम सबको तब बहुत जिज्ञासा थी  कि आने वाले दिन हमारे देश का माहौल कैसा रहेगा ; ख़ैर दिमाग में ये बात भी जरूर थी की जो होगा उससे प्रगति और विकास की लहर दौड़ जाएगी । उस समय काफी मुद्दे थे जिनसे युवाओं  और  अन्य नागरिकों को अपने - अपने मतो का मनमुताबिक इस्तेमाल करना था । तब कहीं न कहीं लोगों को जरूर जिज्ञासा तो रही ही होगी की आगे हमारे राम का क्या होगा । ये तो सब जानते थे कि "आखिर राम का क्या होगा वो तो स्वयं  भगवान है ! हमारे पालनहार है।" कुछ समझदार लोगों ने तो ये ही बात समझी कि ये तो राजनीतिक विषय बन गया है।

           उस समय इन विषयों पर काफी चर्चाएं हुआ करते थे । एक अल्हड़ उम्र के ठेठ व्यक्तित्व वाले बाबा ने तब मुझे बताया ( मुझे नासमझ जानकर) कि  राम जी के निवास में त अभी बहुत समय लागी तभी उनका एक साथी उनसे असहमती दिखाते हुए मुझसे जोर देकर बोल पड़े होईहि सोई जो राम रची राखा। एक तब के दिन के बाद आज मुझे उन अल्हड़ बाबाओं की जुगलबंदी ने 6 ही साल नहीं बल्कि पांच सौ साल के मर्यादा पुरुषोत्तम के संघर्ष की कहानी मेरे आंखों के सामने खींच दी  ; बस आज कारण ये है कि मैं ये महसूस कर पा रहा हूं कि वो सारे लोगों की आस्था ही तो है जिसने पांच सौ वर्षों की कल्पना जो श्री राम को अपने जन्मस्थान पर स्थापित करने की थी उस पूरा कर दिखाया । अब सम्पूर्ण विश्व कि बात जिसमें भक्त और ईश्वर का सम्बन्ध सात्विक है उसे भी कल्पना मात्र से बाहर निकाल कर सच कर दिखाय है कि भक्त की प्रेरणा ही भगवान है और भगवान की अभिलाषा ही भक्ति है । 
     श्रीराम सबके हैं , सारे पंथ , संप्रदाय  ,धर्म  श्रीराम में समाहित हैं। ये श्री राम के घर आने का उत्सव है । ( एक भक्त की कल्पना )  । वाल्मीकि जी के अनुसार,
  सत्य-सत्यमेवेश्वरो लोके सत्ये धर्मः सदाश्रितः । 
  सत्यमूलनि सर्वाणि सत्यान्नास्ति परं पदम् ॥

भावार्थ :
सत्य ही संसार में ईश्वर है; धर्म भी सत्य के ही आश्रित है; सत्य ही समस्त भव - विभव का मूल है; सत्य से बढ़कर और कुछ नहीं है ।
                              जय श्री राम

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